पटना के राजीव नगर रोड नम्बर चार स्थित भाजपा के झारखंड के पूर्व संगठन मंत्री व बिहार प्रदेश भाजपा के पूर्व महामंत्री राजेन्द्र सिंह के आवास पर आयोजित अष्टयामकीर्तन कार्यक्रम में त्रिकालदर्शी विदेह संत श्रीदेवराहाशिवनाथजी महाराज का आगमन हुआ।उपस्थित श्रद्धालु- भक्तों ने संतश्री का फूल-माला से भव्य स्वागत कर संतश्री की पूजा-अर्चना की।पूजा अर्चना के बाद उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी ने कहा कि संसार में दुःख और सुख लगा रहता है।जो आज दुःखी है, वह कल सुखी होगा और जो आज सुखी है, वह कल दुःखी होगा।सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का यह चक्र चलता रहता है।जैसे साईकिल के पहिये के स्कोप का तार बारी-बारी से कभी ऊपर कभी नीचे होता रहता है ,वैसे ही संसार में मनुष्य के जीवन में कभी दुख कभी सुख आता रहता है।जो सुखी है, वह भी दुःखी है और जो दुःखी है ,वह तो दुःखी है ही।कहने का तात्पर्य है कि संसार दुःखालय है।यहां दुःख का दरिया बहता रहता है।सुखी बस वही है जो हरि का भजन करता है।भजन करने वाले को इतना सुख होता है जैसे अगाध जल में मछली को सुख होता है:
सुखी मीन जिमी नीर अगाधा।
तिमी हरि भजन न एकउ बाधा।।
भजन में जो सुख है, वह निराला है।उस सुख को कोई शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता है।भगवान सुख के मध्य ही है ना कि दुःख के मध्य में है । वह सांसारिक दुःख को देखे और उसी में रहे।वह परमानन्दस्वरूप हैं।भगवान और उनका भजन सांसारिक सुख-दुख से ऊपर है।इसलिए सुख-दुःख की चिंता उसी पर छोड़ उसे पाने के लिए उसके नाम की रट लगानी चाहिए।उसका नाम लेने से जीव के अवगुण धीरे-धीरे मिटने लगते है और सद्गुणों का आगमन होने लगता है।तुलसीदासजी ने भी कहा है:
सिमटी सिमटी जल भरहि तलाबा।तिमी सद्गुण सज्जन पही आवा।।जैसे बूंद-बूंद जल से तलाब भर जाता है ,उसी तरह हरि का नाम लेने वाले में सद्गुण आने लगता है।बिना नाम लिए हरि नहीं आते।हमें किसी व्यक्ति को बुलाना होता है तो उसे नाम लेकर पुकारा जाता है, तभी वह आता है।ईश्वर की पुकार होती है तो वह निकट ही रहता है ।भले ही वह आपको दिखे या न दिखे।जीवात्मा के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति वह है जिसमें न दुःख रहे न सुख रहे।यही अवस्था सच्चे सुख की या परा सुख की अवस्था है।
सम्पूर्ण भूतात्मा हर्षते न कांक्षते।
दुःख से छुटकारा पाना है तो हरि का भजन कीर्तन करते रहें।प्रभु में विश्वास कर उनका नाम लेकर देखे कि क्या होता है।काशी में कच्चा बाबा नाम के संत रहते थे।कच्चा बाबा विदेह थे।उनका मन शरीर से परे था वह कच्चा आटा ही खा लेते थे।यह सूचना भारत-भ्रमण के लिए आए जार्ज पंचम तक पहुँची तो ब्रिटिश के जार्ज पंचम ने कच्चा बाबा का दर्शन कर उन्हें कुछ धन देना चाहा तो कच्चा बाबा ने कहा कि दूर हट बादशाह मैं भजन कर रहा हूँ।वे भजन के अवर्णीय आनन्द को एक पल के लिए भी छोड़ना नहीं चाहते थे।संत लोगो उसी आनन्द को प्रदान करना चाहते हैं पर लोग संत के समक्ष भी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति का ही आग्रह करने लगते हैं।