कर्नाटक के बहाने केंद्र तक.

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Hd kumar swami

कर्नाटक में भाजपा के विधानमंडल के फ्लोर पर फेल होने से कांग्रेस द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने तक के तमाम नाटकों ले बावजूद कांग्रेस और जेडीएस सत्ता हासिल करने सफल रही, लेकिन दोनों पार्टी के हाईकमान अभी भी संशय में है कि बहुमत सिद्ध कर पायेंगे कि नही. इसीलिए दोनों पार्टी अपने विधायकों का रिसॉर्ट में ही आवभगत कर रही है. उन्हें डर है कि 5 विधायक भी गायब हुए तो बहुमत सिद्ध नही हो पाएगा.

कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के बहाने कांग्रेस और जेडीएस ने पूरे विपक्ष को एकत्रित करने की कोशिश की है। कांग्रेस प्रत्येक राज्य में भाजपा को घेरने के लिए छोटी से छोटी पार्टी के साथ गठबंधन करने को तैयार है, और स्थानीय पार्टी भी अपना वजूद बचने के लिए इसके साथ गठजोड़ कर भाजपा से दो-दो हाथ करने को तैयार है। जैसे यूपी में- सपा, बसपा बिहार में राजद और हम, महाराष्ट्र में राकपा,झारखंड में झामुमो,जम्मू और कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस से और बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी से। कर्नाटक में शपथ ग्रहण तो केवल बहाना है निशाना तो 2019 में सरकार बनाना है।

इन सबके बावजूद कुछ बातें है जो गौर करने लायक है:

1. क्या विपक्ष राहुल गांधी को नेता मानेगा-एनडीए गठबंधन के नेता कहते है कि यह गठबंधन यानी कि वर्ल्ड 11 बन रही है उसका कैप्टन कौन होगा, जिस तरह राहुल गांधी ने अपने आप को पीएम कैंडिडेट बताया और कर्नाटक में सत्ता कुमारस्वामी के कदमों में रख दी (उस स्तिथि में जब कांग्रेस बड़ी पार्टी थी)।यह बातें कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को खटक सकती है। बात रही अखिलेश यादव की तो वो अभी भी मुलायम सिंह यादव को नेता मानते हैं, और ममता बैनर्जी, मायावती, चंद्रबाबू नायडू और सीताराम येचुरी की भी अपनी महत्वाकांक्षा और अरमान होंगे जो जरूर हिचकोले मार रहे होंगे।

2. क्षेत्रीय पार्टियों के हितों में टकराव और वोट बैंक जिस तरह से विपक्षी ख़ेमे बिना किसी विचारधारा या रोडमैप के एक साथ आ रहे हैं। उनके हितों में टकराव और वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। सभी पार्टियों का अपना एक खास वोट बैंक, एजेंडा और मुद्दा होता है, जो की दूसरे पार्टी के हितों से टकरा सकती है। यह विपक्ष के लिए परेशानी का सवाल है.

3. दो प्रतिद्वंद्वी का गठबंधन: जब दो अ-समान विचारधारा वाली पार्टी एक साथ आती है या सरकार बनाती है तो वह ज्यादा दिन नही टिकती है।जैसे बिहार में नीतीश और लालू, यूपी में माया-मुलायम और बंगाल में कांग्रेस-माकपा (हालांकि बंगाल में जीते नही)का नतीजा हम सबके सामने है। इस स्थिति में सरकार में हमेशा गतिरोध कायम रह सकता है.

4. मोदी लहर: इस तथ्य से तो हम सब वाकिफ़ है की गुजरात और कर्नाटक में कांग्रेस शुरुआती बढ़त बना रही थी लेकिन मोदी के चुनावी मैदान में उतरते ही सब धराशायी हो गई। कहा जाता है कि चुनावी रुख मोड़ने में मोदी को महारत हासिल है। किस मुद्दे पर कैसे चुनाव लड़ना है उन्हें सब पता होता है। वैसे यह देखना शेष है कि की मोदी मैजिक से विपक्षी खेमा कहाँ तक पार पाएगी या फिर उस आँधी में बह जाएगी.

5. सीटों का हेर फेर: विपक्ष को सबसे बड़ी माथापच्ची सीट के बंदर बाँट को लेकर होगी।कांग्रेस, बसपा, तृणमूल कांग्रेस,सपा ,राजद सभी दाल एक से अधिक राज्यो में चुनाव लड़ती है। जिसमें कांग्रेस सभी राज्यो में अपनी स्थिति अधिक से अधिक दर्ज कराना चाहेगी। बसपा भी हिंदी पट्टी के राज्यों में चुनाव लड़ती है, तृणमूल कांग्रेस झारखंड के कुछ हिस्सों पर चुनाव लड़ती है।तो विपक्षी दलों में सीट का बंदरबांट कैसे होगा वो देखने लायक होगा.

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